
कोई भी लाजिक काम करती है ? इस हदीस में. कहीं कोई बात बनती है या बिगढ़ती है
? बने हुए पैगम्बर की चाल है कि ऐसा शगूफा छोडो कि उसके
मानने वाले उसके कलाम पे दीदा रेज़ी करते रहें. मुहम्मद ने हवाओं को भी काफ़िर और मुस्लिम बनाया है.
अबू जेहल नाम रख्खा हुवा है मुहम्मद का. यह नाम ने इतना शोहरत पाया कि मुसलमान इसका असली नाम भी भूल गए हैं. क्या मुहम्मद के दादा अपने बेटे का नाम जेहालत कि औलाद रख सकते थे? अबू जेहल का असली नाम हुशशाम था जो अपने कबीले की नाक था. गैर फितरी बात है कि मरने के बाद भी वह मुहम्मद से गुफ्तुगू करता, वह भी इतनी लचर
मुहम्मद को कुत्तों से खुदाई बैर था . वह कुत्तों का वजूद इस धरती पर नहीं देखना चाहते थे. उनकी वजह से मुस्लमान कुदरत के इस नायाब तोहफे से महरूम हैं.
ये है मुहम्मद की शर्मनाक बेहयाई जो उनहोंने इस्लाम के मुंह पर चस्पा किया है.उसल्मान कहीं मुंह दिखने के लायक नहीं रहा. मगर मुहम्मद को फिर भी सल्ललाहो
अलैहे वसल्लम कहते नहीं थकता.
जीम. मोमिन