मुहम्मद की बकी हुई यह मुस्तनद हदीस है, कई जगहों पर मिलती है. इस हदीस से साबित होता है कि मुहम्मद मुस्तनद जाहिल थे.
उनकी ज़ेहन्यत का अंदाज़ा किया जा सकता है कि वह किस कद्र झूठे थे. क्या सूरज के बराबर बड़ा मन गढ़ंत नहीं है?
अफ़सोस कि आज मुसलमान बच्चों को यह खुराफात पढाई जाती है जो अकीदा बन कर उनके दिमागों में बात जाता है. ऐसा शख्स ज़िन्दगी में क्या बन सकता है? वह अपने लिए क्या कर सकता है और दूसरों के लिए क्या कर सकता है?
गोया हर बात की खबर रखने वाला अल्लाह शैतान की आराम गाह में भंग पीकर सो जाता है. ऐसी हदीसों को जानने के बाद एक आम मुसलमान का इस्लाम से यक़ीन हट जानना चाहिए, मगर यह जहन्नमी ओलिमा हटने जो दें.
एक आम आदमी जो थोड़ी भी समझ रखता है कुरान को जवाब तलब कर सकता है. कुरआन खुद तज़ाद की पोथी है.
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