Tuesday 6 January 2015

Hadeesi Hadse 27


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हदीसी हादसे 27

 बुखारी ९००
रमजान का महीना था, मुहम्मद ऊँट पर सफ़र में थे अपने साथी को हुक्म दिया उतरो मेरे लिए सत्तू बनाओ, उसने कहा अभी रोज़ा अफ्तार का वक़्त नहीं हुवा है.
कुछ देर बाद फिर उससे अपनी बात दोहराई,
उसने फिर कहा अभी वक़्त नहीं हुवा है.
कुछ देर बाद मुहम्मद ने फिर कहा उतरो मेरे लिए सत्तू बनाओ.
वह उतरा और सत्तू बना कर दे दिया.
मुहम्मद खा पी कर फारिग़ हुए तो कहा जब रात  पच्छिम की तरफ़ से आ जाए तो समझ लो रोज़े का वक़्त आ गया.
जहाँ खुद मुहम्मद इतने लिबरल हैं वहीँ मुसलमान उनके मानने वाले इतने सख्त क्यों होते हैं? उनकी जान पर बन जाय मगर रोज़ा वक़्त से पहले न खोलेगे.
इसी तरह पहले हदीस आ चुकी है की मुहम्मद ने आयशा से कहा गोश्त को हराम हलाल मत देखो और बिस्मिल्ला करके खा लिया करो.
बुखारी ८८३ -८४-८५-८६-८७-88
मुहम्मदी अल्लाह कहता है जो शख्स रमज़ान के महीने में झूट बोलना और झूट पर अमल करना न छोड़ सके, वह खाना पीना भी न छोड़े.
*सिर्फ रमज़ान के महीने में क्यूँ झूट पर पाबन्दी हो? १२हो महीने क्यों न हो ? हदीस से लोगों को रमज़ान के आलावा बाकी महीना झूट की छूट है?
मुहम्मद कहते है रमज़ान के महीने में सब काम इन्सान का उसके लिए है. सिर्फ रोज़ा अल्लाह के लिए. माहे- रमज़ान में दो खुशियाँ ही रोज़्दार  को मुयस्सर हैं, पहली अफ़्तार है, दूसरी अल्लाह से मुलाक़ात होगी.
*ज़ालिम जाबिर अल्लाह से मिलने पर ख़ुशी होगी या खौफ?
अल्लाह के झूठे पयम्बर कहते हैं जो शख्स निकाह करने की ताक़त रखता  हो, निकाह करले जो निकाह की ताक़त नहीं रखता वोह रोज़ा रख्खे. रोज़ा इसके वास्ते ऐसा है जैसे खस्सी (बधिया) होना.
* मुहम्मद के इस बात में भी उनकी जेहालत छिपी है. मुस्लमान या खस्सी हो जाय और रोज़े रखे या फिर निकाह करले ताकि रोज़ा से नजात हो.
खुद मुहम्मद तस्लीम करते हैं की हम उम्मी लोग क्या जाने कि महीना कभी उनतीस का होता है तो कभी तीस का.
*जिब्रील अलैहिस्सलाम वे इतनी तवील कुरान याद करा दी, बस बारह अदद महीने के दिन ही न याद करा सके.
मुहम्मद ने रमजान के महीने में बीवियों के पास न जाने की क़सम खाली मगर जिन्स के भूके पयम्बर २९वेन दिन ही किसी बीवी के पास पहुंचे. उसने पूछा कि अप ने तो एक महीने की क़सम खा रक्खी है? बोले महीना क्या उनतीस दिन का नहीं होता?
*जिन्स बेकाबू हो रहा था.


जीम. मोमिन 

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