Tuesday 7 May 2013

H H 83



बुख़ारी १३९४ 
मुख़ालिफ़त बराय मुख़ालिफ़त 
मुहम्मद कहते हैं कि यहूदी और ईसाई अपने बाल को रंगीन नहीं करते , तुम लोग इनकी मुख़ालिफ़त में अपनी दाढ़ियों को रंगीन किया करो .

* यह मुमकिन होता तो मुहम्मद मुसलामानों को मुख़ालिफ़त के बिना पर पैर के बजाए हाथों से चलने की राय देते. मुसलमान अकसर भडुओं की तरह अपने बालों और दाढ़ियों को सुनहरे खिजाब में रंगे रहते है

मुस्लिम - - - किताबुल अक़्फ़िया 
मरदूद अवाम 
आयशा कहती है की उसके पैग़म्बर शौहर ने कहा ,
"जो शख्स ऐसा काम करे जिसके लिए मेरा हुक्म न हो , वह मरदूद है ."

किस कद्र हौसले बढ़ गए थे उस शख्स के कि आलम ए इंसान को अपनी ज़ेहनी गुलामी में कर लेना चाहता था . वह भी अपनी जिहालत और जारहय्यत के ज़ेर ए असर लाकर . इंसानी गैरत को कुचल डालने वाले नाक़्बत अंदेश को तारीख़ जितनी भी बड़ी सज़ा दे कम है. 
मुहम्मद को तो ज़िन्दगी में जज़ा ही जज़ा मिली , सज़ा तो उनको मिली जो इनके झांसे में आए . पहले भी मार खा खा कर मुसलमान हुए और अब मुसलमान होने के नाते सारे ज़माने की मार खा रहे हैं . 

बुख़ारी १३९० 
कुछ भी करो मगर अल्लाह से डरो 
मुहम्मद कहते हैं कि किसी शख्स ने मरने से पहले वसीयत की थी कि इसे मरने के बाद खाक कर दिया जाए और फिर खाक को बहती हुई हवा के हवाले कर दिया जाए. गोया इसके वरसा ने ऐसा ही किया .
अल्लाह ने इसके तमाम अज्ज़ा को जमा किया फिर इसमें जान डाल  दी 
फिर इस से सवाल किया कि तूने ऐसा क्यों किया ? बन्दे ने जवाब दिया कि तेरे डर से .
और अल्लाह ने इसे बख्श दिया .

*इस किस्म की पुड़िया छोड़ना मुहम्मद का मरगूब शगल था . इनको आलिमी दस्तूर के दीगर रस्मों का इल्म नहीं था कि तहजीबें ज़मीनी मख्लूक़ की गिज़ा के लिए मुरदों को चील कव्वों और गिद्ध के हवाले कर दिया करते हैं और बहरी मख्लूक़ की गिज़ा के लिए लाशों को दरया के हवाले कर दिया करते हैं , वर्ना वह उस पर भी ज़बान खोले बिना न रह पाते .
बुख़ारी १३७१ 
खिजिर का काम 
मुहम्मद पुड़िया छोड़ते हैं कि खिजिर अलैहिस्सलाम का नाम खिजिर इस लिए पड़ा कि वह एक साफ चटियल मैदान पर बैठ गए थे , इसी वक़्त वह ज़मीन फ़ौरन हरी भरी हो गई थी .

*इसी बात को अगर कोई दाढ़ी वाला मुसल्मान किसी मुस्लिम महफ़िल में बयान करे तो लोग उसे कठ मुल्ला कहकर उसका मज़ाक़ उडाएँगे  , मगर वह जब बतलाए की यह बात हुज़ूर सलल्लाह ने फरमाई है तो  उस मुस्लिम महफ़िल का सर अकीदत से झुक जायगा .यही है मुसलामानों की ज़ेहनी नामाकूलियत का मौजूदा सानेहा . 
 खिजिर , अरबी रवायत के मुताबिक़ एक फ़रिश्ता है जिसके तहत दुन्या के जंगल हुवा करते हैं और वह अमर है जैसा कि हर फ़रिश्ता अमर होता है . इस रवायत में मुहम्मद ने अपने झूट की आमेज़िश कर दी है और मुसलमान इसी को सच मान कर चल रहा है . 


जीम. मोमिन 

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