
जीम. मोमिन
बुख़ारी १४५३
मुहम्मद कहते हैं कि एक वक़्त आएगा जब लोग गुमराही में मुब्तिला हो जाएँगे. वह हम तुम जैसे लोग होंगे, हमारी जुबान बोलेंगे, मगर ख़बरदार ! तुम अपने इमाम की पैरवी ही करना. अगर इमाम मुयस्सर न हो तो जंगल की तरफ भाग जाना और दरख्तों की जड़ें खा खा कर मर जाना .
हाँ ! यह वक़्त ज़रूर आने वाला है. मुसलामानों की नौबत खुद कुशी की होगी मगर इमामों की कसरत होगी. हर इमाम इनका खून चूसने के दर पे होगा, मुसल्मान अभी से तैयार हो जाएं. ऐसे वक़्त के आने से पहले ईसाई उनके सामने मिशन लेकर खड़े होंगे और हिन्दू शुद्धि करन की भजन मण्डली , मगर खबर दार तुम शुद्ध होने के बाद भी अशुद्ध ही रहोगे . वह तुमको अपने रोटी बेटी में शामिल नहीं करेंगे . ऐसे वक़्त में उन्हें मजदूरों और मेहतरों की ज़रुरत होगी, क्योंकि यह तबका तब तक तालीम याफ्ता होकर इनके बराबर हो चुका होगा .
ईसाइयों को भी तुमको बख्श देने का ख़याल न होगा, इनको तुम्हारे वजूद में मौजूदा सलाहियत होने का फायदा उठाना होगा. इसके आलावा दोनों को चाहिए होगा कंज्यूमर मार्केट .
ऐसा वक़्त आने से पहले मोमिन की मान लो और दीन ए इंसानियत अपना लो . सच्चे इंसान से किसी को बैर न होगा .
मत दलील देना कि तुम्हारा इस्लाम इंसानियत का सबक ही देता है . यह झूठा सबक सिखलाने वाले तुमको , तुम्हारे ओलिमा हैं. इनसे खुद को और अपनी नस्लों को दूर रखना होगा, जैसे कि खारिश ज़दा और पागल कुत्तों से दूर रहते हो .
यह अपनी हुलिया को ताक पर रख कर मेहनत और मशक़्क़त की रोटी खाने लगें तो इनको मुआफ़ करदो .
मुस्लिम किताबुल लिबास ओ ज़ीनत
मुहम्मद की ग्यारवीं बीवी मैमूना कहती हैं कि एक रोज़ सारा दिन मुहम्मद उदास रहे क्योंकि जिब्रील अलै आने का वादा कर चुके थे , मगर आए नहीं . ख़याल आया कि कुत्ते का बच्चा डेरे से निकला था , मुहम्मद ने पानी छिड़क क्र इस जगह को पाक किया. शाम को जिब्रील आए और वजह बतलाई कि कुत्ते की मौजूदगी और नजासत उनको मंज़ूर न नहीं . उस घर में नहीं जाते जिसमे कुत्ता या उसकी मूरत हो .
दूसरे दिन मुहम्मद ने हुक्म दिया कुत्तों को क़त्ल कर दिया जाए . छोटे बाग़ के कुत्ते क़त्ल कर दी गए और बड़े बाग़ के रहने दिए गए .
* दुन्य की सब से प्यारी और इंसान दोस्त मखलूक के साथ पैगम्बर ए इस्लाम का ऐसा सुलूक था. हैरत का मुक़ाम है कि आज के दौर में मुसलमान कुत्तों से उतनी ही नफ़रत करते हैं जितनी मुहम्मद को थी .
एक अँगरेज़ मुफक्किर कहता है कि लोग कुत्ते के बिना कैसे रह लेते हैं ? इस पर हमें यकीन नहीं आता .
बुख़ारी १४५७+१७५५
सकीना बादलों में
हदीस है की एक साहब सूरह कुहफ की तिलावत कर रहे थे कि उनका घोडा जो करीब बंधा था , बिदकने लगा। उन्हों ने सलाम फेर कर इसकी वजह जाननी चाही तो बादलों में सायाए फुगन मालूम पड़ा. इन साहब ने वाकिए को मुहम्मद से अर्ज़ किया. मुहम्मद ने कहा पढ़ते रहते तो बेहतर होता क्योंकि ये सकीना थीं जो तिलावत ए कुरान के वक़्त नाजिल हुई थीं .
*मुहम्मद बर जश्ता झूट बोलने में कितने माहिर थे, बस मौक़ा मिलने की देर होती. उनकी उम्मत चार क़दम आगे निकल जाती है जब ऐसी हदीसों में सच्चाई तलाश कर लेती है. मुहम्मद रोज़ बरोज़ कामयाबियों के जीने चढ़ते जा रहे हैं, अपने आल औलाद को कन्धों पर लादे . उसी एतबार से मुसलमान पाताल में समाता चला जा रहा