Tuesday 9 April 2013

हदीसी हादसे 80


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बुख़ारी  १३५१ 
बदबू दार हदीसें 
"मुहम्मद पुड़िया छोड़ते हैं कि अगर बनी इस्राईल न होते तो गोश्त में बदबू पैदा न हुवा करती और अगर हव्वा न होतीं तो कोई औरत अपने शौहर की ख़यानत न किया करती, यानि यह तरीकः उन लोगों का जारी किया हुवा है, अगर यह लोग ये फ़ेल न करते तो मुसीबत न आती ." 

इस औघड़ को इसका अल्लाह थोड़ी सी अक़्ल सलीम भी देता तो ऐसी बात न करता ,
क्या बनी इस्राईल से पहले यानी याकूब तक गोश्त में बदबू नहीं हुवा करती थी कि उनकी नाक़िस नस्लों के बाद गोश्त में बदबू पैदा होना शुरू हो गई ?
कहता है इस फ़ेल के बाद ?
किसी का तवल्लुद या जन्म लेना उसका फ़ेल कहाँ होता है ? 
मासूम अबोध बच्चे को क्या मालूम रहता है कि जन्म लेने की मुजरिमाना हरकत कर रह है?
पूरी क़ुरआन में "या बनी इस्रईला" की दास्तान गाते गाते, वह हदीस में इनकी ऐसी ज़िल्लत करता है कि इसके वजूद को ही बदबू दार साबित कर दिया. 
दर अस्ल यह हरबा था यहूदियों को रुसवा करने का .
सारी इंसानियत की मादर ए अव्वल मानी जाने वाली हव्वा को मुहम्मद यूँ मुजरिम क़रार देते है जैसे औरत ज़ात की तमाम खामियों की वजेह हव्वा थी, न वह पैदा होने की ग़लती करतीं, न ही औरत ज़ात में यह खामियाँ मौजूद होतीं .
सानेहा ये है कि ऐसी जाहिल रिसालत की इन बातों को मदरसों में Phd कराई जा रही है . तालिब इल्मों की तलाश (शोघ) यह होती है कि ये हदीस , हदीस ए मख़दूस, मशकूक, बातिल या कमज़ोर तो नहीं? 
यही ग़लीज़ इल्म बच्चों के ज़हनों में भर दिया जाता है जिसे व तमाम उम्र ढोते रहते है. 

मुस्लिम किताबुल अख्फ़िया 
मुहम्मद बे ख़याली में कभी कभी कोई माक़ूल बात भी कह जाते हैं, यह भूलते हुए कि यह बात उनकी पैगंबरी के ख़िलाफ़  जाती है, 
"कहते हैं कि हाकिम सोच कर हुक्म दे और सही करे तो उसे दो सवाब, अगर ग़लत हो जय तो एक तो है ही "
हाकिम का हुक्म कुरान और हदीस की रौशनी में होना चाहिए. हुक्म सही हो या ग़लत. यह किताबें कहाँ सही हैं? जो इन पर तकिया रख कर इन्साफ किया जा सके.
इस्लाम का क़ानून है तौहीन रिसालत पर मुजरिम का सर क़लम कर दिया जाय. यह कोई इन्साफ़ हुवा कि  झूट का साथ न देने पर मौत के घाट उतार दिया जाए . 
बुख़ारी  १ ३ ६ १  
बाबा इब्राहीम का ख़तना
मुहम्मद गढ़ते हैं कि 
" हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपना ख़तना अस्सी साल की उम्र में खुद अपने हाथों से एक कुल्हारी से मुकाम क़ुदूम में किया ."
 * मुहम्मद ने अपना ख़तना कभी नहीं कराया और एलान किया कि मैं तो मख़तून पैदा ही हुवा हूँ . इनकी बात को तस्दीक़ नहीं करा सके लोग कि कौन शामत मोल ले ?
इस बात की गवाही उनकी बीवीयाँ, बांदियाँ और उनकी रखैलें दे सकती थीं मगर वह सब उनकी गुलामी में थीं .
यह माफ़ौक़ुल फितरत है कि कोई इंसान मख़तून पैदा हो। हाँ  कभी कभी किसी आज़ा में नुक्स होता है भी तो वह बात इसके जिस्म की कहानी बन कर समाज में फैल जाती है .
गोया उम्मत ए अक्दास के पैगम्बर तमाम उम्र जिस्मानी तौर पर काफ़िर और मुशरिक रहे जो उनके तमाम झूटों में मुजस्सम झूट कहा जा सकता है. 
ख़तना बहुत पुराना तरीका ए कार है जो यहूदियों में सदियों से चला आ रह है, जिसकी नक़्ल मुहम्मद ने बे चूँ चरा अपना लिया .
भारत में जब दंगे होते हैं तो पैंट उतार कर लिंग दिखलाना हिदू और मुसलमान दोनों की मजबूरियाँ बन जाती हैं .


जीम. मोमिन 

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