Wednesday 3 October 2012

Hadeesi Hadse 55


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अंडे में इनक़्लाब

इंसानी जेहन जग चुका है और बालिग़ हो चुका है. इस सिने बलूगत की हवा शायद ही आज किसी टापू तक न पहुँची हो, वगरना रौशनी तो पहुँच ही चुकी है, यह बात दीगर है कि नसले-इंसानी चूजे की शक्ल बनी हुई अन्डे के भीतर बेचैन कुलबुलाते हुए, अंडे के दरकने का इन्तेज़ार कर रही है. मुल्कों के हुक्मरानों ने हुक्मरानी के लिए सत्ता के नए नए चोले गढ़ लिए हैं. कहीं पर दुन्या पर एकाधिकार के लिए सिकंदारी चोला है तो कहीं पर मसावात का छलावा.
 धरती के पसमांदा टुकड़े बड़ों के पिछ लग्गू बने हुए है. हमारे मुल्क भारत में तो कहना ही क्या है! कानूनी किताबें, जम्हूरी हुकूक, मज़हबी जूनून, धार्मिक आस्थाएँ , आर्थिक लूट की छूट एक दूसरे को मुँह बिरा रही हैं. ९०% अन्याय का शिकार जनता अन्डे में क़ैद बाहर निकलने को बेकरार है, १०% मुर्गियां इसको सेते रहने का आडम्बर करने से अघा ही नहीं रही हैं. गरीबों की मशक्क़त ज़हीन बनियों के ऐश आराम के काम आ रही है, भूखे नंगे आदि वासियों के पुरखों के लाशों के साथ दफन दौलत बड़ी बड़ी कंपनियों के जेब में भरी जा रही है और अंततः ब्लेक मनी होकर स्विज़र लैंड के हवाले हो रही है. हजारों डमी कंपनियाँ जनता का पैसा बटोर कर चम्पत हो जाती हैं. किसी का कुछ नहीं बिगड़ता. लुटी हुई जनता की आवाज़ हमें गैर कानूनी लग रही हैं और मुट्ठी भर सियासत दानों , पूँजी पतियों, धार्मिक धंधे बाजों और समाज दुश्मनों की बातें विधिवत बन चुकीहैं. कुछ लोगों का मानना है कि आज़ादी हमें नपुंसक संसाधनों से मिली, जिसका नाम अहिंसा है.सच पूछिए तो आज़ादी भारत भूमि को मिली, भारत वासियों को नहीं. कुछ सांडों को आज़ादी मिली है और गऊ माता को नहीं. जनता जनार्दन को इससे बहलाया गया है. इनक़्लाब तो बंदूक की नोक से ही आता है, अब मानना ही पड़ेगा, वर्ना यह सांड फूलते फलते रहेंगे. स्वामी अग्निवेश कहते हैं कि वह चीन गए थे वहां उन्हों ने देखा कि हर बच्चा गुलाब के फूल जैसा सुर्ख और चुस्त है. जहाँ बच्चे ऐसे हो रहे हों वहां जवान ठीक ही होंगे. कहते है चीन में रिश्वत लेने वाले को, रिश्वत देने वाले को और बिचौलिए को एक साथ गोली मारदी जाती है. भारत में गोली किसी को नहीं मारी जाती चाहे वह रिश्वत में भारत को ही लगादे. दलितों, आदि वासियों, पिछड़ों, गरीबों और सर्व हारा से अब सेना निपटेगी. नक्सलाईट का नाम देकर ९०% भारत वासियों का सामना भारतीय फ़ौज करेगी, कहीं ऐसा न हो कि इन १०% लोगों को फ़ौज के सामने जवाब देह होना पड़े कि इन सर्व हारा की हत्याएं हमारे जवानों से क्यूं कराई गईं? और हमारे जवानों का खून इन मजलूमों से क्यूं कराया गया? चौदह सौ साल पहले ऐसे ही धांधली के पोषक मुहम्मद हुए और बरबरियत के क़ुरआनी कानून बनाए जिसका हश्र आज यह है कि करोड़ों इंसान वक्त की धार से पीछे, खाड़ियों, खंदकों, पोखरों और गड्ढों में रुके पानी की तरह सड़ रहे हैं। वह जिन अण्डों में हैं उनके दरकने के आसार भी ख़त्म हो चुके हैं. कोई चमत्कार ही उनको बचा सकता है. 
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बुखारी १०६४ 
मुहम्मद कहते हैं क़यामत के दिन ईमान दारों को दोज़ख और जन्नत के दरमियाँ एक पुल पर खड़ा किया जायगा. वह जब दुन्या के मज़ालिम को आपस में अदला बदली करके पाक साफ़ हो जाएँगे तो उस वक़्त उनको जन्नत में दाखिल किया जाएगा. इस मौके पर मुहम्मद ग़ैर ज़रूरी क़सम भी खाते हैं 
"उस ज़ात की क़सम कि जिसके क़ब्ज़ा ए कुदरत में मुहम्मद की जान है, कि इन्सान अपने अपने मकानों को दुन्या के मकानों से ज्यादा पहचानता होगा" 
* गोया स्टोक एक्सचंज का नकशा पेश करते हुए मज़ालिम की अदला बदली करने के बाद पाक साफ़ हो जाएँगे? कैसे भला ?कोई उम्मी के दिमागी कैफियत समझ सके तो मुझे भी समझाए. मुहम्मद इतनी बड़ी क़सम, ज़रा सी बात के लिए. बड़े झूट के लिए है बड़ी कसमों की ज़रुरत. 

बुखारी १०६५ 

ऐसी ही एक हदीस है कि क़यामत के दिन अल्लाह मुस्लमान को अपने करीब बुलाएगा और उसके साथ खुसुर फुसुर करेगा कि तूने यह यह गुनाह किए थे जो ज़ाहिर न हो सके और मुस्लमान हरेक गुनाह का एतराफ कर लेगा. अल्लाह सब गुनाहों को मुआफ करता हुवा उसकी की गई नेकियों की किताब उसके हाथ में रक्खेगा जो काफिरों और मुनाफेकीन पर गवाही होगी कि ये लोग हैं जिन्हों ने अल्लाह के हक में झूट बोला था. 
याद रख्खो ज़ुल्म करने वालों पर अल्लाह की लअनत है. 

* मुसलमानों! 
कोई क़यामत ऐसी नहीं होगी जिसमे दुन्या की रोज़े अव्वल से ल्रकर आज तक की आबादी इकठ्ठा होगी और अल्लाह फर्दन फर्दन मुसलमानों से काना फूसी करेगा. 
मुहम्मद और उनका अल्लाह उनकी बेहूदा कुरानी बातों को न मानने वालों को ज़ालिम कहते हैं और जिहाद जैसे ज़ुल्म को नेकी कहते हैं. इनके जाल से बहार निकलें.
बुख़ारी १०६६

मुहम्मद कहते हैं कि मुसलमान एक दूसरे के भाई हैं. इनको चाहिए कि एक दूसरे लो ईज़ा न पहुँचाए, इस पर ज़ुल्म करने पर आमदः न हो. अपने किसी भाई की हाजत में कोशां रहे, अल्लाह तअला क़यामत के रोज़ उसकी पर्दा पोशी करेगा - - -
*इस दुन्या को तअस्सुब और जानिब दारी इस्लाम ने सब से ज़्यादा सिखलाई है, उल्टा मुसलमान दीगरों को तअस्सुबी कहने में पेश पेश रहता है. यह वबा आलमी पैमाने पर फैली हुई है. मुसलमानों को झूठे तरीके समझाने वाला खुद अपनों का शिकार देखा गया है. मुसलमान जहाँ भी काबिज़ है हमेशा आपस में जंग ओ जदाल में मुब्तिला रहते हैं. मुहम्मद अपने साथ साथ अपने अल्लाह की भी मिटटी पिलीद किए हुए हैं. देखिए कहते हैं 
"अल्लाह तअला क़यामत के रोज़ उसकी पर्दा पोशी करेगा"
पर्दा पोशी ऐबों की की जाती है जो अल्लाह करेगा.



जीम. मोमिन 

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