
बकरीद
आज बकरीद
है. धार्मिक अंध
विश्वास के
तहत आज क़ुरबानी
का दिन है.
अल्लाह को
प्यारी है,
क़ुरबानी. अब
अगर अल्लाह ही
किसी अनैतिक बात
को पसंद करता
हो, तो बन्दे
भला कैसे उसको
राज़ी करने का
भर पूर मुजाहिरा
न करेंगे, भले
ही यह हिमाक़त
का काम क्यूं
न हो. वैसे
अल्लाह को
क़ुरबानी अगर
प्यारी है
तो मुस्लमान अपनी
औलादों की
कुर्बानी किया
करे. जानवरों की
क़ुरबानी कोई
बलिदान है
क्या? क़ुरबानी की
कहानी ये
है कि बाबा
इब्राहीम की
कोई औलाद न
थी. उनकी पत्नी
जवानी पार
करने के हद
पर आई तो
उसने अपने शौहर
को राय दिया
की वह मिसरी
लोंडी हाजरा
को उप पत्नी
बना ले ताकि
वह उसकी औलाद
से अपना वारिस
पा सके.उसके
बाद हाजिरा हमला
हुई और इस्माईल
पैदा हुए, मगर
हुवा यूं कि
उसके बाद वह
खुद हामिला हुई
और इशाक पैदा
हुवा. इसके बाद
सारा हाजिरा और
उसके बेटे से
जलने लगी. सारा
ने हाजिरा से
ऐसी दुश्मनी बाँधी
कि पहली बार
हामला हाजिरा
को घर से
बाहर कर दिया.
वह लावारिस दर
बदर मारी मारी
फिरी और आख़िर
सारा से माफ़ी
मांगी और
घर दाखिल हुई.
जब इस्माईल पैदा
हुवा तो सारा
और भी कुढने
लगी इसके बाद
जब खुद इशाक
की माँ बनी
तो एक दिन
अपने शौहर को
इस बात पर
अमादा कर
लिया कि वह
हाजिरा के
बेटे को अल्लाह
के नाम पर
क़त्ल कर दे.
इब्राहीम राज़ी
हो गया मगर
उसके दिल में
कुछ और ही
था. वह अलने
बेटे इस्माईल को
लेकर घर से
दूर एह पहाड़ी
पर ले गया,
रास्ते में
एक दुम्बा भी
खरीद लिया और
इस्माईल की
क़ुरबानी को
एक घटना बतलाया
"इस्माईल की
जगह अल्लाह ने
दुम्बा ला
खड़ा किया" जो
आज क़ुरबानी के
रस्म की सुन्नत
बन गई है.
इस नाटक से
दोनों बीवियों
को इब्राहीम ने
साध लिया.
जब इब्राहीम
ने अपने बेटे
की क़ुरबानी दी
तो अकेले वह
थे और उनका
अल्लाह, बेटा
मासूम था
गोदों में
खेलने की
उसकी उम्र थी.
यानि कोई गवाह
नहीं था सिर्फ
अल्लाह के
जो अभी तक
अपने वजूद को
साबित करने
में नाकाम है,
जैसे कि तौरेत,
इंजील और
कुरान के
मानिंद उसे
होना चाहिए. दीगर
कौमें वक़्त
के साथ साथ
इस क़ुरबानी के
वाक़िए को
भूल गईं जो
इब्राहीम ने
अपने दो बीवियों
के झगडे का
एक हल निकाला ,
मगर मुसलामानों ने
इसको उनसे उधार
लेकर इस फ़ितूर
पर क़ायम हैं.
हिदुस्तान मे
भी ये पशु
बलि और नर
बलि की कुप्रथा
थी, मगर अब
ये प्रथा जुर्म
बन गई है.
कहीं कोई देव
इब्राहीम नुमा
नहीं बचा कि
उसकी कहानी की
मान्यता क़ायम
हो.
जीम. मोमिन
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