Wednesday 20 June 2012

Hadeesi Hadse 41


बुखारी २२३ 
मुहम्मद ने अपनी ज़िन्दगी में जो सब से बड़ा झूट गढ़ा वह किस्से-मेराज था. उससे बड़ा सानेहा ये है कि मुसलमान इस झूट पर आज भी यकीन और ईमान रखते हैं. 
खुराफाती ज़ेहन गढ़ता है कि - - -
"मैं मक्का में था, यकायक मेरे कमरे की छत शक हुई और जिब्रील नाज़िल हुए. उन्हों ने मेरा सीना चाक करके पाक किया और एक तिशत जो हिकमत और ईमान से लबरेज़ था, इससे मेरे सीने को पुर किया और सीने को बराबर कर दिया फिर मुझको आसमान की तरफ़ ले चले." 
जब आसमानी दुनिया के करीब पहुंचे. उन्हों ने दरवाज़ा खोलने की फरमाइश की. 
आवाज़ आई कौन है? 
जिब्रील ने कहा मैं जिब्रील. 
आवाज़ आई तुम्हारे साथ कौन है ? 
कहा मुहम्मद रसूललिलाह 
उधर से जवाब आता इन्हें नबी बना कर मबऊस किया गया ? 
जिब्रील के हाँ कहते ही दरवाज़ा खुल गया. 
हम आसमानी दुन्या पर पहुँचे वहां हमने देखा एक शख्स को कि उसके दाहिने जानिब भी रूहें है और बाएँ जानिब भी रूहें हैं. वह दाएं जानिब देख कर ख़ुशी से हंस देता है और बाएँ जानिब देख कर गम से देता है. उन्हों ने मुझे देखते ही मरहबा कहा और मेरा इस्तकबाल किया. बेटे और नबी के अलफ़ाज़ से मुझे पुकारा. मैंने जिब्रील से दरयाफ्त किया ये कौन हैं? बतलाया आदम अलैहिस्सलाम हैं. इनकी दाएं जानिब जो इनकी औलादें हैं वह जन्नती हैं और बाएँ जानिब जो औलादें है, वह दोजखी. वह दाएँ के जन्नती औलादों को देख कर हंस देते हैं और बाएँ जानिब दोजखियों को देख कर रो देते हैं. 
इसके बाद हम दूसरे आसमान की जानिब चढ़े. वहां भी सबिक़ा नौअय्यत दरपेश हुई और दरवाज़ा खोल दिया गया. 
मुहम्मद कहते हैं वहां उन्हों ने आसमानों पर ने आदम, ईसा, मूसा और इब्राहीम अलैहिस्सलामन को देखा. 
मुहम्मद आसमान चढ़ते, जिब्रील अलैहिस्सलाम आसमानों का दरवाज़ा खटखटाते और ईसा, इदरीस. आदम और इब्राहीम अलैहिस्सलामान से मिलते मिलाते और अपना खैर मक़दम कराते पांचवीं आसमान पर पहुँच जाते है जहाँ उनकी मुलाक़ात मूसा से होती है. उनसे गुफ्तुगू करने के बाद सातवें आसमान पर पहुँचते हैं जहाँ उनकी मुलाक़ात चिलमन की आड़ में बैठे अल्लाह मियाँ से होती है वह बैठे कुछ लिख रहे थे, उनके कलम की सरसराहट मुहम्मद को सुनाई पड़ रही थी. अल्लाह मियां से दरपर्दा पचास रिकत नमाज़ों का तोहफा मुसलमानों के लिए मुहम्मद को मिला. मुहम्मद लौटते हुए मूसा से फिर मिले और अपने तोहफ़े से मूसा को आगाही दी. मूसा ने उनको अल्लाह मियाँ के पास लौटाया कि जाओ, इतनी ज्यादा नमाज़ों को कम कराओ. मुहम्मद दो बार इसी तरह गए और लौटे.
बिल-आखीर पाँच रिकत मंज़ूर करा के वापस हुए. अल्लाह ने कहा अच्छा पांच बार पढो जिससे पचास रिकात का सवाब मिलेगा अब हमारे कौल में तब्दीली नहीं होगी. 
वापसी पर मूसा ने फिर मुहम्मद को समझाया कि तुम्हारी उम्मत के लिए यह भी बहुत ज्यादा है, कम कराओ, देखो मुझे अपनी उम्मत से सबक लिया है कि अल्लाह के फरमान की पाबंद नहीं हो सकी.
मुहम्मद ने ईसा से कहा - - -
"अब मुझको अपने परवर दिगार से शर्म आती है, वापस न जाऊँगा" अल्गाराज़ जिब्रील मुझे वहां से सदरतुल मुन्तेहा पर ले गए. मैंने मुख्तलिफ रंगों से मुज़य्यन पाया जो मेरी समझ में नहीं आ सकते. वहां से जन्नत में दाखिल हुवा. वहां की मिटटी को देखा कि मुश्क है और मोतियों के हार वहां मौजूद हैं. 
*यह मेराजुन नबी का वाकिया तब हुवा था जब मुहम्मद मक्के में थे. इतने बड़े वाकिए का ज़िक्र हज़रात दस साल बाद मदीने में अपने मुंह लगे साथी अनस को सुनते हैं.
वाज़ह हो कि एक बार और जिब्रील ने बचपन में इनका सीने को चीड फाड़ कर साफ़ और पाक किया था. मुहम्मद को चाहिए था कि वह सीने की बजाए अपना भेजा पाक साफ कराते जोकि झूट की गलाज़त से बदबू दार हो गया था.
मेराजुन नबी का वाकिया मुख्तलिफ ओलिमा ने अपने अपने ढंग से मुसलमानों को परोसा है. कहते हैं कि मुहम्मद के इस तवील सफ़र में इतना ही वक़्त लगा था कि जब जिब्रील इनको सफ़र से उस शक हुए कमरे पर छोड़ा था तो दरवाजे की कुण्डी हिल रही थी जिससे वह निकल कर गए थे और उनका तकिया अभी तक गरम था यानी पल झपकते ही आसमानी सफ़र से वापस आ गए थे.
कहते हैं कि मुहम्मद के साथी और दूसरे खलीफा उमर ने मुहम्मद को आगाह किया था कि अगर आप ऐसी पुडिया छोड़ते रहे तो इस्लाम की मुहीम एक दिन छू हो जाएगी.फिर मुहम्मद ने उसके बाद इस किस्म की बण्डल बजी नहीं की. 



जीम. मोमिन 

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