Tuesday, 3 July 2012

Hadeesi Hadse 42


बुखारी ३७९
मुहम्मद कहते हैं जब अल्लाह के साये के अलावः कोई साया होगा, अल्लाह तअला अपने साए में सात किस्म के लोगों को रख्खेगा- - -हाकिम ए आदिल.
- वह जवान जो यादे-खुदा में ही परवरिश पाया हो.
- वह शख्स जिस का दिल हर वक़्त मस्जिद में लगा रहता है.
- वह लोग जो खुदा के वास्ते ही प्यार करते हों और उसी के वास्ते एक दूसरे से जुदाई अख्तियार करते हों. ? ? ?
- वह शख्स जिसे इज्ज़त वाली हसीन औरत अपने पास बुलाए और वह जवाब देदे कि मुझको खुदा से खौफ़ मालूम होता है.
- जो शख्स सद्कः दाएं हाथ से करे और बाएँ हाथ को खबर हो.
- और वह शख्स जो अकेले में याद इलाही में गिर्या करता हो.
* अहले हदीस इस इक्कीसवीं सदी में कंप्यूटर की तालीम न लेकर मुहम्मद की बातें याद करते है और उन पर अमल करते है. सातों नुक्ते वक़्त की हवा से उलटे सम्त को जाते हैं. इनको मुसलमान अपना निसाब बना कर जीते हैं.
ये लोग अल्लाह के साए में होंगे, बाकी मुसलामानों का क्या होगा? 

बुखारी ३७६
मुहम्मद ने कहा पांच तरह की मौतों से शक्श शहीद होता है - - -
- ताऊन से मरे
- पेट की बीमारी से मरे
- पानी में डूब कर मरे
- दब कर मरे
- जिहाद में मौत हो.
*किस बुन्याद को लेकर जन्नत मुक़र्रर हुई? मौत तो कई बार बड़ी ही अज़ीयत नाक होती है.
इसी हदीस में एक बात मुसबत पहलू रखती है, मुहम्मद कहते हैं राह में पड़ी कंटीली झाड़ी जो उठा कर बाहर डाल दे, अल्लाह उसका शुक्र गुज़ार होता है. हांलाकि मुहम्मदी अल्लाह अगर खुद चाहे तो ये काम कर सकता है. या काँटों भरे राहों से मुसलमानो को बचा सकता हो.


 बुखारी ३७२
मुहम्मद ने कहा कि खुदा की क़सम कई मर्तबा मैंने इरादा किया कि अपनी जगह मैं किसी और को मुक़र्रर कर के, मैं लकडियाँ चुनूँ और उनके घरों में आग लगा दूं जो इशां के वक़्त नमाज़ पढने नहीं आते.
कहा, अल्लाह की क़सम जिसके कब्जे में मेरी जान है अगर ये एलान कर दिया जाय कि नमाज़ के बाद बकरी की एक हड्डी या एक खुरी मिलेगी तो यह लोग भागते हुए मस्जिद में जाएं .
*मुहम्मद ने सहाबियों की हक़ीक़त बताई है जिन्हें बड़े अदब और एहतराम के साथ मुसलमान सहाबी ए किरम कहा कहते हैं.

बुखारी ३५३-३५४-३५५

इस्लाम का शुरुआती दौर था, लोग मुहम्मद के मस्जिद में इकठ्ठा होते और नमाज़ हो जाया करती. मुहम्मद के मफरूज़ा मेराज का मुआमला जब दर पेश हुआ तो उनके लिए अल्लाह से जो तौफ़ा मिला वह उम्मत को दिन में पाँच बार नमाज़ें थीं. मुहम्मद ने मुसलमानों को नमाज़ों में मुब्तिला रखने के लिए नमाज़ों को दिन में पाँच बार मसरूफ रख्खा. मुसलमानों को वक़्त मुक़रररा पर मस्जिद में हाज़िर होने का क्या तरीक़ा हो?

एक दिन मस्जिद में लोगों की मीटिग हुई, लोगों ने अपने अपने तरीक़े सुझाए, किसी ने कहा नससारा की मानिंद नाक़ूस फूँका जाए, किसी ने यहूदियों की तरह सींग बजाने का सुझाव दिया.

उमार बोले बांग देना ठीक रहेगा, कि किसी की नकल.

मुहम्मद को बात पसंद आई, बाँग के बोल मुरततब किए गए और इसे नाम दिया गया "अज़ान".

मुहम्मद ने बिलाल से कहा उट्ठो अज़ान दो.

इसके बाद अज़ान के पाखंड गढ़े गए. अज़ान की अज़मत और बरकत तराशे गए, यहाँ तक कि मुसलमान बच्चों के कानों में पहली आवाज़ इस झूट की फूँकी जाती है कि - - -

" मै गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं"

अजान के तमाम बोल बुनयादी तौर पर झूट हैं.

मुहम्मद ५५ वीं हदीस में कहते हैं कि अज़ान की आवाज़ सुन कर शैतान गूज मरता (पादता) हुवा भागता है और इतनी दूर तक चला जाता है जहाँ कि अज़ान की आवाज़ पहुंचे. अज़ान ख़त्म होते ही वह फिर महफ़िल में धमकता है.

मुहम्मद की अक्ल पर तरस आती है कि शैतान पूरी मस्जिद में बदबू फैलता हुवा जाता है, इसी बदबू में मुसलमान इबादत करते हैं.

मुहम्मद कहते हैं कि शैतान नमाजियों को नमाज़ में बहकता है, हत्ता कि वह भूल जाते हैं कि कितनी रिकत पढ़ी?

दर असल नमाज़ के एकांत में जेहन इंसानी भटक कर कहीं और चला जाता है, प्रोग्रामिंग करने लगता है कि आज क्या करना है,किस्से मिलना है . . . वगैरा वगैरा.
इसी अजानी अजमत में मुहम्मद कहते है जो मोमिन अजान की आवाज़ सुनते है, क़यामत के दिन जिन्न इन्स उसके गवाह होंगे.
अनस कहता है जब मुहम्मद किसी बस्ती पर हमला करने इरादा करते तो सुब्ह तह इंतज़ार करते कि बस्ती से अज़ान की आवाज़ आती है या नहीं, अगर आवाज़ आती तो बस्ती कि गारत गरी फ़रमाते.


बुखारी २८७

झूठे अनस से हदीसों की भरमार है, कहता है "मुहम्मद के यहाँ आए दो सहाबी अँधेरी रात में वापस जब अपने घर के तरफ़ चले तो अचानक दो चरागों की रौशनी नमूदार हुई और दोनों के हमराह हो गई. जब यह दोनों अलग होकर अपने अपने घरों के रास्ते हुए तो दोनों रौशनियाँ अलग अलग हो कर उनकी रहनुमाई करने लगीं, हत्ता कि वह अपने अपमे घरों तक पहुँच गए."

* अनस की बात गैर फ़ितरी है. इन्हीं बातों पर यकीन करके मुसलमान अपनी पुरानी दुन्या में पड़ा हुवा है. करामाती हर झूटे उमूर को सच मानता है, नतीजतन वह अपनी औलादों को लेकर पस्मान्दगी को सर पे रखे हुए है. याद रखें कि मुहम्मद हिजरत में किसी मुरदार जानवर कि चमड़ी पा गए थे और उसे चबाने और चूसने लगे. अपने लिए कोई मुअज्ज़ा न कर सके. किसी चरागी रौशनी ने उनका साथ न दिया.


बुख़ारी २४५-४६

शोख आयसा कहती हैं कि जब मुहम्मद नमाज़ में होते तो मैं क़िबला जानिब पैर करके लेट जाती. सजदा करके वह इशरा करते तो मैं पैर समेट लेती, जब वह सजदे में जाते तो फिर पैर उसी तरह कर लेती.

दूसरी हदीस में कहती हैं कि जब मुहम्मद नमाज़ पढ़ते तो मैं उनके सामने जनाज़े की तरह पड़ी रहती.

*बूढा रसूल कमसिन बीवी की तमाम अदाएं झेलता था और अपने रचे क़ानून क़ायदे से बेनयाज़ हो जाता.


जीम. मोमिन 

Hadeesi Hadse 43


गोड पार्टिकल
मैं ने हमेशा साइंस दानो को आखिरी सच्चाई का खोजी माना है जो हमेशा अपनी खोज को अब तक सच कहते है. वह इकरार करते हैं कि उनके बाद भी कोई दूसरा सच हो सकता है. इसके खिलाफ हमारे धर्म गुरु अपनी मंतिक से तरह तरह के ईश्वरीय झूट गढ़ते रहते हैं. उनके कल्पना की उड़ान कभी ब्रह्मा, विष्णु, महेश के कार्य कलाप गढ़ती है तो कभी गोड की संतान ईसा गढ़ती है, तो कभी उसके पैगम्बरों को गढ़ लेती है.फिर इनकी दूकाने खोलती है.
आज इक्कीसवीं सदी में सैकड़ो साइंस दान गोड को नहीं बल्कि उसके पार्टिकल को तलाश रहे अर्थात भगवानो खुदा की दुम पकड़ने कि कोशिश कर रहे हैं . वह उसकी पहली हरकत की तलाश में हैं जिसे पाकर वह पूरी की पूरी गाय को समझने का काम कर करेंगे. इन सच्चाइयों को पाकर जब वह दुनया के खुदा को हमें बतलाएंगे तो खयाली खुदाओं का भेद खुल जायगा. कायनातों को नए खुदा की शक्ल दिखलाई जाएगी और यह इंसान सदियों से जो खुदाओं का सजदा और दंगा करता चला रहा है, अपने अतीत पर शर्मिंदा होगा. उसे मालूम होगा कि मख्लूकों में वही सबसे बदतर और सब से बेहतर मखलूक है. सब से ज्यादह समझदार और सबसे बड़ा बे वकूफ इंसान खुद है. बाकी जीव इससे अच्छे और सच्चे हैं.
हमारे साइंस दान जो असली पैगम्बर हैं, हमें इतनी ज़मीनें देंगे कि अगर हम चाहें तो अलग अलग ग्रहों पर तने-तनहा रह सकते हैं. देश प्रदेश नुमा ज़मीनों के फसाद इस दुन्य से उठ हो जाएँगे.
 


बुखारी ४९०
बण्डल बाज़ सहाबी अनस कहता है कि मुहम्मद पहले मस्जिद के खम्बे में टेक लगा कर खुतबा दिया करते, फिर जब मिम्बर तैयार हो गया तो उसमें टेक लगा कर बोलते.
आगे कहता है कि उस मिम्बर से ऐसी रोने की आवाज़ आती थी गोया दस महीने की गाभिन ऊंटनी की रोने की आवाज़ आती हो.


बुखारी ४७४
रेशमी हुल्लाह (एक किस्म का लिबास) मुहम्मद के हिसाब से मुसलामानों पर हराम है. किसी ने इनको इसका तोहफः दिया जिसे उन्हों ने लेकर अपने ख़लीफ़ा उमर को भिजवा दिया.उसे वापस लेकर उमर मुहम्मद के पास आए और सवाल किया कि जब रेशमी कपडे खुद अपने पर आप हराम करार देते हैं तो मुझे किस इरादे से भिजवाया? (मुहम्मद कशमकश में पड़  गए, कोई जवाब था.
उमर ने उस कुरते को अपने भाई को मक्का में भेज दिया को अभी तक काफ़िर था
*सारे मुआमले झूठे ईमान की अलामत हैं.


बुखारी ४७१ -७२-७३
मुहम्मद मुसलमानों के लिए सवाबों का मिक़दार मुक़र्रर करते है, कहते हैं जो शक्स जुमे की नमाज़ के लिए नहा धो कर पहली साइत चला उसको एक ऊँट की क़ुरबानी का सवाब मिलता है. दूसरी साइत में चला उसको एक गाय की क़ुरबानी का सवाब मिलता है, जो तीसरे साइत चलता है उसे एक सींग दार बकरी की क़ुरबानी का सवाब मिलता है, चौथी साइत चलने वाले को एक मुर्गी की क़ुरबानी का सवाब मिलता है और पांचवीं साइत जाने वाले को एक अंडे के सदके का सवाब मिलता है.
* मुहम्मद ने बतलाया ही नहीं कि जुमे की नमाज़ ही न पढने वाले को कितना अज़ाब मिलता है? शायद एक हाथी के बराबर का अज़ाब.
मुसलामानों ने मुहम्मदी अल्लाह के सवाबों और अज़ाबों का वज़न किस तरह उनके अल्लाह ने मुक़र्रर क्या? कभी कोह सफ़ा के बराबर तो कभी एक अंडे के बराबर. इन घामडों को इस्लाम के अक्ल का अँधा बना रख्खा है.
मुहम्मद कहते हैं जुमा से जुमा तक साबित कदमी से खशबू लगाकर नमाज़ अदा करने वालों के तमाम हफ्तावारी गुनाह मुआफ हो जाते हैं.


बुखारी ४६३
लहसुन
मुहम्मद ने कहा जो शख्स लहसुन खाकर मस्जिद में आए, वह मेरे साथ नमाज़ों में शरीक हो.
*हिदू मैथोलोजी लहसुन को अमृत मानती है मगर इसे राक्षस का उगला हुवा मानती है जो कि सागर मंथन से दस्तयाब हुवा था.
आज भी लहसुन दस्यों मरज़ की दवा बनी हुई है. इसके आलावा लहसुन टेस्ट मेकर है, मसालों में लहसुन अपना मुक़ाम रखती है. मुहम्मद को फायदे मंद चीजों में नुकसान नज़र आता है और मुज़िर में फायदा.


बुखारी ४४२
किसी ने मुहम्मद से पूछा कि क्या क़यामत के दिन हम लोग अल्लाह का दीदार कर सकते हैं? जवाब था कि क्या बगैर अब्र छाए चाँद को देखने में तुम्हें कोई शक है? लोगों कहा कहा नहीं नहीं. फिर मुहम्मद ने कहा बस क़यामत के दिन बिना शक शुबहा अल्लाह का दीदार होगा. हिदायत होगी हर गिरोह उसके साथ हो जाय जिसकी इबादत करता था, बअज़ आफ़ताब के साथ होंगे, बअज़ माहताब. बअज़ शयातीन ले साथअलगरज़    सिर्फ यही उम्मत मय मुनाफ़िकीन के बाकी रहेगी. इस वक़्त खुदाय तअला इनके सामने आयगा. इरशाद होगा हम तुम्हारे रब है, वह कहेगे हम पहचानते हैं. इसके बाद दोज़ख पर पुल रखा जायगा. तमाम रसूलों में जो सब से पहले इस पुल से गुजरेंगे वह मैं हूँगा. इस दिन सब रसूलों का कौल होगा " खुदा हम को सलामत रखना. खुदा हम को सलामत रखना. " दोज़ख में सादान के काँटों के मानिंद आंकड़े होंगे. अर्ज़ होगा, हाँ!
फ़रमाया बस वह सादान के काँटों की तरह ही हैं इनके बड़े होने का मिकदार खुदा ही जनता है.
हर एक के आमाल के मुताबिक वह खीँच लेगे - - -
*तहरीर बेलगाम बहुत तवील है जिसे न हम झेल पा रहे है न आप ही झेल पाएँगे. इसका सारांश क्या है ? एक पागल की बड़ जो फिल बदी बकता चला जाता है.
मुसलमान इसी में उलझे हुए हैं की ये बला है क्या ?


बुखारी ३९५ -४०४
कठ्बैठे मुहम्मद कहते हैं "जो शख्स नमाज़ में पेश इमाम से पहले सजदे से सर उठता है, उसको इस बात का खौफ़ नहीं रहता कि खुदा उसका सर गधे के सर की तरह कर देगा ."
*नमाज़ों की पाबंदी रखने वाला मुसलमान सजदे में पड़ा हुआ है, उसे कैसे मालूम हो कि पेश इमाम ने सर उठाया या नहीं. मगर मुहम्मदी अल्लाह सब के सरों की निगरानी करता रहता है. वह ज़ालिम दरोगा की तरह बन्दों की हरकत पर नज़र किए रहता है. इसी तरह मुहम्मद कहते हैं कि "नमाज़ों में अपनी सफ्हें सही कर लिया करो वर्ना अल्लाह तअला तुम्हारे चेहरों में मुखालफत कर देगा."
*इससे मुसलामानों को जिस कद्र जल्द हो सके पीछा छुडाएं ,


 बुखारी ३८०
मुहम्मद ने कहा "जो शख्स सुब्ह शाम जब नमाज़ के लिए जाता है तो अल्लाह उस के लिए जन्नत में तय्यारी करता है."
*मुहम्मदी अल्लाह को कायनात की निजामत से कोई मतलब नहीं, वह ऐसे की कामों में लगा रहता कि कौन शख्स क्या कर रहा है.

जीम. मोमिन