Wednesday 18 February 2015

Hadeesi Hadse 32


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हदीसी हादसे 32
बुखारी 1157
किसी ने मुहम्मद से पूछा कि कौन सा काम अफज़ल और बेहतर है? 
जवाब था जिहाद, अपनी जान और माल के साथ। 
इसके बाद?
किसी पहाड़ी घाटी में मसरुफे-इबादत रहना .
*जिहाद जिसमे इंसानी जिंदगी का सफ़ाया , यहाँ तक ही मासूम बच्चों और अबला औरतों को भी मौत के घाट उतार देना , उसके बाद भी उनके माल मता को लूट लेना . उनकी खेती बड़ी में आग लगा के तबाह ओ बर्बाद कर देना . 
अली मौला तो इस से भी आगे बढ़ गए थे कि उन्होंने समूची बस्ती को बमय इंसानी जानों के , के हवाले कर दिया था। उनके चाचा अब्बास ने उनकी इस हरकत की मज़म्मत की कि अली ने बन्दों को वह सजा दी है जो सिर्फ अल्लाह को हक है। 
पहाड़ी घटी में मसरूफ ए इबादत रहना कोई ऐसा काम नहीं जिस से मखलूक का कोई भला होता हो। यह महज़ खुद फरेबी है या फिर नाकार्गी . मुहम्मद भी गारे-हिरा में मुराक्बा में जाते थे, ज़हनों में साजिशी मंसूबे बनाते थे जो बिल-आखिर इस्लामी तबाही बन कर पूरी दुन्य के लिए एक अज़ाब साबित हुवा।

बुखारी 1159
मुहम्मद कहते हैं जन्नत के सौ दर्जात अल्लाह ने मुरत्तब किए है जो जिहादियों के लिए मखसूस हैं , इनमें से एक दूसरे में फासला इतना है जितना ज़मीं ओ आसमान के बीच का होता है। जन्नाओं में अफज़ल जन्नत , जन्नतुल फिरदोस है जो सातवें आसमान पर अल्लाह के साथ है और जन्नतों की तमाम नहरें इसी से निकली हुई हैं .
* मुहम्मद बेकारी में बैठे बैठे कुछ न कुछ गढ़ंत गढ़ा करते।उनकी बातों को सोच कर हैरानी होती है की इंसानी जेहन उसे कुबूल कैसे करता? पहले यह बातें तलवार के साए में रहने वाले मजबूरी में मान लिया करते थे, उस के बाद उनकी नस्लों को तालीम-नाकिस ने मनवाया। आज के ज्यादह हिस्सा मुसलमान मुहम्मद को अल्लाह का राजदार मानता है कि अल्लाह ही मुहम्मद को इन बातों का इल्म देता रहा होगा।
यह लोग कैसे सोच सकते हैं की मुहम्मदी अल्लाह खुद मुहम्मद का रचा हुवा है .
अफ़सोस कि मुहम्मद ने मानव समाज की सदियों की सदियाँ ज़ाए कर दिया .
बुखारी 1161
मुहम्मद कहते हैं जिहादी सफ़र के लिए सूरज निकलने और डूबने के दरमियान निकलना ख़ैर ओ बरकत का वक़्त होता है .
*यह तो घर से दिनों दिन जिहाद के लिए निकलने की राय देते हैं मगर काफिरों पर हमले का वक़्त रात का चौथा पहर बतलाया है जब कि लोग आखरी नींद ले रहे हों। ज़ाहिर है कि वह इस आलम में जवाबी हमले की तय्यारी कैसे कर सकते है। डाकुओं का गिरोह हुवा करता था, सुब्ह सुब्ह बस्ती पर यलगार करके बस्ती को तहे-तैग कर देते। जवानो को चुन चुन कर मारते, औरतें और बच्चे गुलाम और लौंडी बना लिए जाते।
बुखारी 1162 
मुहम्मद कहते हैं अगर जन्नत से कोई हूर नीचे ज़मीं पर झाँक ले तो उसके हुस्ने- जमाल से तमाम कायनात रौशन और मुअत्तर हो जाए . सके सर की ओढनी दुन्या और माफिया , दोनों से आला और अफज़ल है .
*अय्याश तबअ खुद साख्ता रसूल ख्बाबों की जन्नत की सैर हर रहे हैं . 


जीम. मोमिन 

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