Wednesday 20 August 2014

Hadeesi hadse 9


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हदीसी हादसे 9

बुखारी २८७ 
झूठे अनस से हदीसों की भमर है , कहता है "मुहम्मद के यहाँ आए दो सहाबी अँधेरी रात में वापस जब अपने घर के तरफ़ चले तो अचानक दो चरागों की रौशनी नमूदार हुई और दोनों के हमराह हो गई. जब यह दोनों अलग होकर अपने अपने घरों के रास्ते हुए तो दोनों रौशनियाँ अलग अलग हो कर उनकी रहनुमाई करने लगीं, हत्ता कि वह अपने अपमे घरों तक पहुँच गए." 
* अनस की बात गैर फ़ितरी है. इन्हीं बातों पर यकीन करके मुसलमान अपनी पुरानी दुन्या में पड़ा हुवा है. करामाती हर झूटे उमूर को सच मानता है, नतीजतन वह अपनी औलादों को लेकर पस्मान्दगी को सर पे रखे हुए है. याद रखें कि मुहम्मद हिजरत में किसी मुरदार जानवर कि चमड़ी पा गए थे और उसे चबाने और चूसने लगे. अपने लिए कोई मुअज्ज़ा न कर सके. किसी चारागी रौशनी ने उनका साथ न दिया.

बुख़ारी २४५-४६ 
शोख आयसा कहती हैं कि जब मुहम्मद नमाज़ में होते तो मैं क़िबला जानिब पैर करके लेट जाती. सजदा करके वह इशरा करते तो मैं पैर समेट लेती, जब वह सजदे में जाते तो फिर पैर उसी तरह कर लेती. 
दूसरी हदीस में कहती हैं कि जब मुहम्मद नमाज़ पढ़ते तो मैं उनके सामने जनाज़े की तरह पड़ी रहती. 
*बूढा रसूल कमसिन बीवी की तमाम अदाएं झेलता था और अपने रचे क़ानून क़ायदे से बेनयाज़ हो जाता. 

बुखारी २६३ 
बहरीन से माले-ग़नीमत का मुहम्मदी हिस्सा आया तो मुहम्मद ने इसे मस्जिद में रखवा दिया. वक़्त-मुक़रर्रा पर मस्जिद गए तो इधर कोई तवज्जो न किया. बाद नमाज़ के इधर जब आए तो चचा अब्बास ने उनसे अपना हिस्सा और अपने बेटे का हिस्सा तलब क्या . मुहम्मद ने कहा लेलो. अब्बास ने अपने चादर में इतना मॉल भरा कि उसको उठा कर अपने सर पर रख न सके, इस के लिए मुहम्मद से मदद चाही जिसे मुहम्मद ने इंकार कर दिया, गरज माल को कम करके जितना उठा सके, उठा कर ले गए. मुहम्मद अपने लालची चचा को जाते हुए तब तक देखते रहे कि जब तक वह नज़र से ओझल न हो गए. गौर तलब है कि इसी लालची की नस्लें इक दौर-हुक्मरान इक दौर बने. इक अब्बासी दौर की हुक्मरान बने. 
इस हदीस से साफ़ ज़ाहिर होता है कि मरकज़ में बैठे मुहम्मद मेल-गनीमत (लूट पट के माल) को कैसे अपने ख़ानदान में तक़सीम करते. लूट पाट का पाँचवां हिस्सा अल्लाह और मुहम्मद का होता और ४/५ हिस्सा लुटेरों का होता. इस्लाम इस तरह से उरूज पर आया जिसे तालिबान आज भी जारी रखना चाहते हैं. 

बुखारी २३३ 
वाकिया है कि मुहम्मद एक बार सिर्फ तहबन्द पहन कर काबा की मरम्मत कर रहे थे कि एक पत्थर उठाने में उनकी तहबंद दरपेश आ रही थी, ये देख कर उनके चाचा अब्बास ने कहा बेटा !तहबन्द उतार कर काँधे पर रख लो तो आसानी हो जाए. मुहम्मद ने वैसा ही किया यानी बरहना हो गए. उसके बाद वह बेहोश होके गिर पड़े. मुहम्मद कहते हैं कि उसके बाद मैं कभी भी नंगा न हुवा. 

बुखारी २३७ 
अनस से हदीस है कि खैबर के लिए जब मुहम्मद चले तो उनके हामी मुस्लिम लुटेरों ने अलल सुभ खैबर पर हमला करने से पहले फज्र की नमाज़ अदा की, फिर मुहम्मद ने घोड़े पर सवार होकर खैबर की गलियों में गश्त करना शुरू किया और उसके बाद तीन बार नराए-तकब्बुर लगाया और एलान किया कि "खैबर बर्बाद हुवा, कि हम जब किसी कौम पर नाजिल होते हैं तो उसकी बर्बादी का सामान होता है." 
लोग अपने अपने कामों पर जा रहे थे कि उनकी आवाज़ पर उनके लुटेरे सामने आ गए, अलकिस्सा निहायत sakhti के साथ जंग हुई. मुसलामानों की फतह याबी हुई. बहुत से क़ैदी हाथ आए 
एक लुटेरा वह्यिः कलबी मुहम्मद के सामने हाज़िर हुवा और कहा ऐ मुहम्मद मुझे एक लौंडी अता की जाए, मुहम्मद ने कहा जाओ एक लौड़ी पसंद करके ले लो. उन्हों ने सफ़िया बिन्त हई को चुनाथ कि एक शख्स मुहम्मद के सामने आया और कहा आपने सफ़िया बिन्त हई को वह्यिः कलबी को दे दिया हालाँकि वह बनी क़रीज़ा और बनी नुज़ैर दोनों की सरदार रह चुकी हई और आपके काबिल थी. 
मुहम्मद ने कहा वह्यिः कलबी को बुलाओ, जब वह मुहम्मद के सामने हाज़िर हो गया तो मुहम्मद ने कहा तुम उस लौड़ी को छोड़कर किसी और को लेलो. चुनाँच मुहम्मद ने उसे आज़ाद करके उसके साथ निकाह कर लिया. 
रस्ते में ही मुहम्मद की रखैल उम्मे सलीम सफ़िया को दुल्हन बनाया और वहीँ शबे-ज़हफ़ हुई. सुब्ह को मुहम्मद दूलह बने हुए जब बहार आए तो लोगों को हुक्म दिया कि जिनके पास जो खाना हो वह हाज़िर करें, दस्तर ख्वान चुना जाए. लिहाज़ा लोगों ने घी, सत्तू खजूरें वगैरह हाज़िर कीं . यही मुहम्मद का वलीमा था. 
मुहम्मद ने वाकई खैबर बर्बाद कर दिया. यहूदियों का खुशहाल कस्बा मुहम्मद की निगाह में बरसों से चढ़ा था. 
किसी भी खतरे से बेनयाज़ बस्ती सुब्ह की नींद में डूबी यहूदी बस्ती, ज़ालिम लुटेरे मुहम्मदी फौज के नार्गे में थी. दरवाजे खोला तो सामने मौत खड़ी थी. मर्द मारे गए या खेतों खाल्यानो में भागे. औरतें और बच्चे लौंडी और गुलाम बना लिए गए. बाप भाई औए शौहर की लाशों के दरमियान मुहम्मद के साथ मजलूम खातून निकाह और सुहाग रात मनाने पर मजबूर हो गईं. 
मुसलमानों की तरह ही यहूदियों के पास भी मुहम्मदी जरायम की दस्तावें हैं. आज अपने आबाई वतन मदीना और मक्का पर वह दावेदारी करते हैं तो हक बजानिब हैं. 

जीम. मोमिन 

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