
***
हदीसी हादसे 10
धर्मांध आस्थाएँ
मोक्ष की तलाश में गए जन समूह को पहाड़ों की प्राकृति ने लील लिया आस्थ कहती है उनको मोक्ष मिल गया , वह सीधे स्वर्ग वासी हो गए , सरकार और मीडिया इसे त्रासदी क्यों मानते है . समाज में भगवन का दोहरा चरित्र क्यों है .?
यह मामला धर्म के धंधे बाजों की ठग विद्या है , इनकी दूकानों का पूरे भारत में एक जाल है . इन लोगों ने हमेशा जगह जगह पर अपने छोटे बड़े केंद्र स्थापित कर रखे हैं और भोली भ भाली नादाँ जनता इनका आसान शिकार हैं . सब कुछ गँवा चुकने के बाद भी जनता के मुंह से कल्पित भगवानों के विरोध में शब्द नहीं फूटते हैं . मठाधिकारी आड़म्बरों के उपाय सुझाते फिर रहे हैं और अपने अपने गद्दियों के लिए लड़ रहे हैं जनता सब कुछ देख कर भी अंधी बनी हुई है .
मुस्लिम वहदानियत और निरंकार के हवाई बुत को लब बयक कहने के लिए मक्का जाते हैं और शैतान के बुत को कन्कडियाँ मार कर वापस आते हैं. बरसों से यह समाज अरबियों की सहायता हज के नाम पर करता चला आ रहा है . अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार होता है .
कब यह मानव जाति जागेगी ? कब तक समाज का सर्व नाश होता रहेगा . अलौकिक विशवास को आस्था का नाम दे दिया गया है और गैर फ़ितरी यकीन को अकीदत का मुकाम हासिल है . बनी नॊअ इन्सान के हक में दोनों बातें तब असली सूरत ले सकती हैं जब मुसलामानों को केदार नाथ और हिन्दुओं को हज यात्रा पर जबरन भेज जाए.
बुखारी ३७९
मुहम्मद कहते हैं जब अल्लाह के साये के अल्लावः कोई साया न होगा, अल्लाह तअला अपने साए में सात किस्म के लोगों को रख्खेगा- - १-हाकिम आदिल.
२- वह जवान जो यादे-खुदा में ही परवरिश पाया हो.
३- वह शख्स जिस का दिल हर वक़्त मस्जिद में लगा रहता है.
४- वह लोग जो खुदा के वास्ते ही प्यार करते हों,और उसी के वास्ते एक दूसरे से जुदाई अख्तियार करते हों. ? ? ?
५- वह शख्स जिसे इज्ज़त वाली हसीन औरत अपने पास बुलाए और वह जवाब देदे कि मुझको खुदा से खौफ़ मालूम होता है.
६- जो शख्स सद्कः दाएं हाथ से करे और बाएँ हाथ को खबर न हो.
७- और वह शख्स जो अकेले में याद इलाही में गिर्या करता हो.
* अहले हदीस इस इक्कीसवीं सदी में कंप्यूटर की तालीम न लेकर मुहम्मद की बातें याद करता है और उन पर अमल करता है. सातों नुक्ते वक़्त की हवा से उलटे सम्त को जाते हैं. इनको मुसलमान अपना निसाब बना कर जीते हैं.
ये लोग अल्लाह के साए में होंगे, बाकी मुसलामानों का क्या होगा.
बुखारी ३७६
मुहम्मद ने कहा पांच तरह की मौतों से शक्श शहीद होता है - - -
१- ताऊन से मरे
२- पेट की बीमारी से मरे
३- पानी में डूब कर मरे
४- दब कर मरे
५- जिहाद में मौत हो.
किस बुन्याद को लेकर जन्नत मुक़र्रर हुई? मौत तो कई बार बड़ी ही अज़ीयत नाक होती है.
इसी हदीस में एक बात मुसबत पहलू रखती है, मुहम्मद कहते हैं राह में पड़ी कंटीली झाड़ी जो उठा कर बहार डाल दे, अल्लाह उसका शुक्र गुज़ार होता है. हांलाकि मुहम्मदी अल्लाह अगर खुद चाहे तो ये काम कर सकता है. या काँटों भरे राहों से मुसलमानो को बचा सकता हो.
बुखारी ३७२
मुहम्मद ने कहा कि खुदा की क़सम कई मर्तबा मैंने इरादा किया कि अपनी जगह मैं किसी और को मुक़र्रर कर के, मैं लकडियाँ चुनूँ और उनके घरों में आग लगा दूं जो इशां के वक़्त नमाज़ पढने नहीं आते.
कहा, अल्लाह की क़सम जिसके कब्जे में मेरी जान है अगर ये एलान कर दिया जाय कि नमाज़ के बाद बकरी की एक हड्डी या एक खुरी मिलेगी तो यह लोग भागते हुए मस्जिद में आ जाएं .
*मुहम्मद सहाबियों की हक़ीक़त बताई है जिन्हें बड़े अदब और एहतराम के साथ मुसलमान सहाबी ए किरम कहा करते हैं.
बुखारी ३५३-३५४-३५५
इस्लाम का शुरुआती दौर था, लोग मुहम्मद के मस्जिद में इकठ्ठा होते और नमाज़ हो जाया करती. मुहम्मद के मफरूज़ा मेराज का मुआमला जब दर पेश हुआ
तो उनके लिए आल्लाह से जो तौफ़ा मिला वह उम्मत को दिन में पाँच बार नमाज़ें थीं. मुहम्मद ने मुसलमानों को नमाज़ों में मुब्तिला रखने के लिए नमाज़ों को दिन में पाँच बार मसरूफ रख्खा. मुसलमानों को वक़्त मुक़रररा पर मस्जिद में हाज़िर होने का क्या तरीक़ा हो?
एक दिन मस्जिद में लोगों की मीटिग हुई, लोगों ने अपने अपने तरीक़े सुझाए, किसी ने कहा नससारा की मानिंद नाक़ूस फूँका जाए, किसी ने यहूदियों की तरह सींग बजाने का सुझाव दिया.
उमार बोले बांग देना ठीक रहेगा, न कि किसी की नकल.
मुहम्मद को बात पसंद आई, बाँग के बोल मुरततब किए गए और इसे नाम दिया गया "अज़ान".
मुहम्मद ने बिलाल से कहा उट्ठो अज़ान दो.
इसके बाद अज़ान के पाखंड गढ़े गए. अज़ान की अज़मत और बरकत तराशे गए, यहाँ तक कि मुसलमान बच्चों के कानों में पहली आवाज़ इस झूट की फूँकी जाती है कि - - -
" मै गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं"
अजान के तमाम बोल बुनयादी तौर पर झूट हैं.
मुहम्मद ५५ वीं हदीस में कहते हैं कि अज़ान की आवाज़ सुन कर शैतान गूज मरता (पादता) हुवा भागता है और इतनी दूर तक चला जाता है जहाँ कि अज़ान की आवाज़ न पहुंचे. अज़ान ख़त्म होते ही वह फिर महफ़िल में आ धमकता है.
मुहम्मद की अक्ल पर तरस आती है कि शैतान पूरी मस्जिद में बदबू फैलता हुवा जाता है, इसी बदबू में मुसलमान इबादत करते हैं.
मुहम्मद कहते हैं कि शैतान नमाजियों को नमाज़ में बहकता है, हत्ता कि वह भूल जाते हैं कि कितनी रिकत पढ़ी?
दर असल नमाज़ के एकांत में जेहन इंसानी भटक कर कहीं और चला जाता है, प्रोग्रामिंग करने लगता है कि आज क्या करना है,किस्से मिलना है . . . वगैरा वगैरा.
इसी अजानी अजमत में मुहम्मद कहते है जो मोमिन अजान की आवाज़ सुनते है, क़यामत के दिन जिन्न ओ इन्स उसके गवाह होंगे.
अनस कहता है जब मुहम्मद किसी बस्ती पर हमला करने इरादा करते तो सुब्ह तह इंतज़ार करते कि बस्ती से अज़ान की आवाज़ आती है या नहीं, अगर आवाज़ न आती तो बस्ती कि गारत गरी फ़रमाते.
जीम. मोमिन