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मुहम्मद जब पेट में थे, उनके बाप चल बसे, बचपन में ही माँ का इन्तेक़ाल हो गया। इसके बाद दाई हलीमा की सुपुरदगी में बकरियाँ चराने में उनका काफ़ी वक़्त बीता। फिर मुहम्मद अपने घर में अपनी माँ की हबशन लौंडी ऐमन के साथ रहने लगे जो कि उम्र में उनसे कुछ बड़ी थी, इतनी की उनकी पैदाइश पर उनका गू मूत और पोतड़े वही धोती। मुहम्मद के रिश्तेदार तो बहुतेरे थे, सगे दादा, कई एक चचा भी थे, मगर यतीम का कोई पुरसान ए हाल न था। झूठे ओलिमा इनके दादा और चाचाओं की दास्तानें बघारते हैं। साबित यह होता है कि वह मक्का के लोगों की बकरियां चरा कर अपना और ऐमन का गुज़ारा करते। पचीस साल की उम्र तक उनकी ज़िन्दगी की कोई क़ाबिल ए ज़िक्र हल-चल नहीं मिलती।
मुहम्मद के मिज़ाज को देखते हुए यह बात यकीन के साथ कही जा सकती है कि सिने बलूग़त आते आते इनका जिस्मानी तअल्लुक़ ऐमन के साथ हो चुका था। उस वक़्त यह बात कोई मायूब भी नहीं मानी जाती थी।
खादीजः ने जब मुहम्मद के सामने निकाह की पेश कश रखी तो मुहम्मद को कोई एतराज़ न हुआ, हांलाकि वह उम्र में उनसे पंद्रह साल बड़ी थीं, मगर मालदार थीं। मुहम्मद ने घर जंवाई बनना भी ठीक जाना। वह साथ में अपनी लौड़ी को भी ले गए।
इसी दरमियाँ ऐमन हामलाः हो गई, खदीजः के मशविरे पर मुहम्मद ने फ़ौरन इसकी शादी की बात मान ली। ग़ुलाम ज़ैद उनकी गुलामी में था ही, उसे ऐमन का शौहर बना दिया, गोकि उसकी उम्र अभी बारह साल की ही थी, वह जिन्सियात से वाक़िफ़ भी नहीं था कि एक अदद बच्चे का बाप बन गया। लौंडी और ग़ुलाम की मजाल ही क्या थी कि शादी से इनकार कर देते। ज़ैद मशहूर हदीस गो ओसामा का बाप कहलाया, जो कि दर अस्ल मुहम्मद का बेटा था। मुहम्मद ने इसे हर जगह फ़ौक़ियत भी दी।
इसी ज़ैद बिन हारसा की दूसरी कहानी शुरू हुई जब मुहम्मद ने इसकी दूसरी शादी अपनी रखैल जैनब से की।
किसी इस्लामी मुवर्रिख की मजाल नहीं की इस सच्चाई को क़लम
ज़द कर सके।
बुख़ारी 1253
अली का इल्म
"किसी सहाबी ने अली से दरयाफ्त किया कि आप को कुछ ऐसे एहकाम भी मालूम हैं जो क़ुरआन से हट कर हों ?
अली ने क़सम खाकर कहा मुझे क़ुरआन के एहकाम के सिवा कोई चीज़ मालूम नहीं या एक सहीफ़ह है जिस में तहरीर है कि कोई मुसलमान किसी काफ़िर के क़स्सास में क़त्ल नहीं होगा ."
*शिया हजरात आम मुसलमानों से ज्यादह तालीम याफ्ता होते हैं। इनको अक्सर तकरीरों में सुनने का मौकाः मिला, कमबख्त ज़मीन और आसमान का कुलाबह मिला देते हैं। अपने ताजिराना बयान में यह लोग तमाम इंसानी क़द्रें पंजातन, मुहम्मद , फातमा , अली , हसन और हुसैन में पिरो देते हैं। यहाँ पर अली खुद तस्लीम करते हैं कि उनका इल्म कितना था। यही सोलह आना सहिह है।
बचपन से ही अली मुहम्मद पिछ लग्गू रहे। अली के वालदैन ने उनको मुहम्मद के किफ़ालत में दे दिया था, जिनका इल्म से कोई वास्ता नहीं था . जवान होते ही अली ज़ुल्म और गारत गरी में मुब्तिला हो गए। नतीजतन मुहम्मद के आखरत के बाद से लेकर अपनी आखरत तक वह घिनावनी सियासत में पड़े रहे। पढने पढाने का मौकाः की कब मिला ? इनको तो शिया पीटों ने आलिम ओ फ़ाज़िल बना रख्खा है .
बुखारी 1257
मुहम्मदी अल्लाह काना नहीं है
"मुहम्मद ने कहा तुमको दज्जाल से डराता हूँ . अगर्च कि हर एक नबी ने इससे अपनी उम्मत को डराया है, हत्ता कि नूह अलैहिस्सलाम ने भी अपनी उम्मत को डराया था , लेकिन मैं तुमको एक ज़ायद बात बतलाता हूँ कि दज्जाल काना होगा , अल्लाह ताला काना नहीं।"
*अल्लाह काना नहीं, यानी उसकी दोनों आँखें सहीह सलामत हैं, किसी ने उसकी एक आँख को फोड़ा नहीं, न ही उसको मोतिया बिन्द हुवा।
अल्लाह की आँखें हैं तो कान नाक मुंह हाथ पैर सभी अज्ज़ा होंगे औए आज़ा ए तानासुल भी . कभी अंगडाई भी आती होगी और अपनी तरह किसी तनहा जिन्स ए मुखालिफ को तलाश करता होगा . बकौल फैज़ - - -
मुहम्मद ने अपने अल्लाह के साथ बद तमीज़ी की है। कोई मदक्ची ही इस किस्म की बातें करता है। अगर उनका अल्लाह काना, लूला, लंगड़ा या बहरा होता तो बात बतलाने की होती, अल्लाह ऐबदार है।
मुहम्मद ने अपनी उम्मत को एक लक़ब बख्शा है कि एक आँख की खराबी वाले इंसान को ज़रा सी बात पर काना दज्जाल सुनने की ज़िल्लत उठानी पड़ती है।
बुखारी 1276
"मुहम्मद फ़रमाते हैं कि एक नबी ने बस्ती के लोगों से जिहाद में शिरकत का एलान किया , मगर उन लोगों को रोका जिनकी शादी हुई हो और सुहागरात न मनी हो। उनको भी जिनके मकानों की छत पड़ना बाकी हो, और उनको भी जिन की बकरियां और ऊंटनीयाँ बियाई न हों।
ग़रज़ बाकी लोग जिहाद के लिए निकल पड़े। अस्र के वक़्त उस गाँव के नज़दीक पहुंचे, नबी ने अल्लाह से दरख्वास्त की कि सूरज को कुछ देर के लिए डूबने से रोके ताकि दिन के उजाले में जिहाद की कारगुज़ारी को अंजाम देदें। गोयः सूरज रुक गया और दिन के उजाले में ही लूट पाट से जिहादी फ़ारिग हो गए।
जिहाद में लूट के माल को देख कर वह नबी छनके कि तुम लोगों में से किसी ने ग़नीमत में ख़यानत की है। नबी ने हुक्म दिया कि सब लोग उनके पास आएं और उनके हाथ पर हाथ रख कर सफ़ाई पेश करें। इससे दो चोरों के हाथ नबी के हाथ से चिपक गए . उन दोनों चोरों ने एक गय के सर के बराबर सोना चुरा रखा था। उसके मिलने के बाद ही आग ने ग़नीमत को खाना मंज़ूर किया .
आगे मुहम्मद कहते हैं कि पहले गनीमत खाना हराम था और उसको आग को खिला दिया जाता था, मगर मेरे जोअफ़ और आजिजी को देख कर अल्लाह ने हमारे लिए गनीमत (लूट पाट का माल )को हलाल कर दिया।"
*इस्लाम से पहले जंगों में लूट पाट नाजायज़ क़रार था, वह भी अवाम को लूटना तो जुर्म हुवा करता था। इसको मुहम्मद ने मुसलमानों के लिए हलाल कर दिया और मकर का सहारा लेकर कहा कि अल्लाह ने मेरी ज़ईफ़ी और आजज़ी को देख सुनकर इसे हलाल कर दिया।
मुहम्मद के बुढ़ापे और कमजोरी पर और उनकी दुआओं पर तरस खाकर अल्लाह ने उनके लूट-पाट को जायज़ कर दिया, ठीक ही किया कि कमज़ोर पर तरस आई,
मगर उनके बाद उनकी उम्मत को हमेशा के लिए जईफ और कमज़ोर भी कर दिया कि वह हमेशा ग़नीमत खाते रहें। लूट पाट से न मिले तो खैरात ज़कात खाया करें, बासी तिवासी, उगला जूठन को निंगल लिया करें। आज कौम मुहम्मद की दुआओं के असर से दुन्या में खुली आँखों से महरूम और रू सियाह है।
कैसा है मुहम्मदी अल्लाह जो लूट पाट करने के लिए सूरज को डूबने नहीं देता ताकि लुटेरे आराम से मेहनत कशों की बस्ती को लूट सकें, इस लिए कि उनके मेहनत से हासिल किए गए असासे को आग के हवाले कर दिया जाए।
मगर देखिए कि ज़लील पैगम्बरी ने कैसे अपनी ज़ात को चमकाया है?
अंधे मुसलमानों !
तुमको कौन सा आयना दिखलाया जाए की तुम सही और ग़लत की तमीज़ कर सको। इन हराम के जाने बेज़मीर ओलिमा ने तुम्हें इस्लाम की उलटी तस्वीर को दिखला कर गुमराह किए हुए हैं।
जागो! जागो !! जागो !!!
जीम. मोमिन
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